आज महावीर जयंती के उपलक्ष्य पर कुछ चंद बातें आपसे शेयर करना चाहता हूँ। हो सकता है ये बातें आपको चुभ जाए या आप इन बातों से कुछ सीख जाए। मेरा उद्देश्य आपको दुखी करना नहीं है। खुले दिमाग़ से आगे पढ़े और कुछ कमी रह जाए तो कॉमेंट बॉक्स पर सुझाव दीजिए।
आज़ादी के समय जैन पॉप्युलेशन कुछ 0.46% हुआ करती थी पूरी आबादी में से। और 2011 census के अनुसार ये पॉप्युलेशन सिर्फ़ 0.37% रह गयी। और ये आँकड़ा कम ही होगा आने वाले समय में, क्यूँकि आजकल के काफ़ी बच्चे जैन धर्म की तरफ़ ध्यान नहीं दे रहे, और काफ़ी मात्रा में लोग देश के बाहर सेटल हो रहे है। अब बाहर जाने वालों को तो कोई रोक नहीं सकता पर आने वाली जेनरेशन पर ध्यान ज़रूर दिया जा सकता है।
आजकल के बच्चों ने मंदिर जाना छोड़ दिया है या काफ़ी हद तक कम कर दिया है। अगर आप 40-50-60+ की उमर वाले ये पोस्ट पढ़ रहे हो तो आप सबसे पहेले बच्चों को ही इसके लिए दोषी टहरायेंगे। आप इंटरनेट को भी ब्लेम करेंगे। और शायद पश्चिमी संस्कृति को भी एक दो गाली निक़ाल कर अपना पल्ला झाड़ लेंगे। पर सच्चाई ये है की पश्चिमी संस्कृति वाले लोग आज हम लोगों से ज़्यादा धर्म और ध्यान कर रहे है।
आप सोचेंगे ये ध्यान कहाँ से बीच में आ गया इस पोस्ट में?
मैं कल रोज़ की तरह 30 min ध्यान लगाने बैठा। हमेशा की तरह मैंने ध्यान लगाने के बाद कुछ पुराने गुरू लोगों के बारे में पढ़ा। उनमें से एक गुरू ने भगवान महावीर के ध्यान लगाने की प्रशंसा की। मैंने सोचा, जिस धर्म को मैंने बचपन से इतना follow करा है, school के दिनो में इतना मंदिर गया हूँ, मुझे आज तक कभी किसी ने भगवान महावीर और उनके ध्यान लगाने की ताक़त को क्यूँ नहीं समझाया? मुझे क्यूँ हमेशा ये बताया की नमोकर मंत्र बोलो पर ये नहीं बताया कि ये नमोकर मंत्र ध्यान लगाने से कैसे जुड़ा हुआ है। स्कूल में भी हमेशा सवेरे में प्रार्थना होती थी पर कभी किसी ने ये नहीं बोला की 10min इस प्रथाना पर ध्यान लगा कर देखो।
धर्म सबने करवाया पर ध्यान किसी ने नहीं करवाया।
और आज उन्ही कारणवश, मैंने ख़ुद अपने जैन धर्म को समझने में इतनी देरी कर दी। पर मैं उन बचे हुए कुछ लाखों में से 1 हूँ जो अपनी समझ से इस धर्म को समझ पाया। पर क्या आपका बच्चा समझ पाएगा? सच ये है कि आपके बच्चे को भी जबरन मंदिर जाना नहीं पसंद क्यूँकि उसे कभी किसी ने समझाया नहीं की मंदिर धर्म की नहीं ध्यान की जगह है। सच ये है की आपके बच्चे को जबरन किसी महाराज से मिलना नहीं पसंद क्यूँकि उसे नहीं पता कि एक मुनिजन कितने घंटो और दिनो तक ध्यान लगाते है मोह और माया छोड़ने से पहेले।
आज हर दूर दराज देश के आदमी ध्यान की तकनीक सीखने भारत आता है। और ज़रूरी भी है क्यूँकि आए दिन डिप्रेशन और ख़राब मेंटल हेल्थ के केस बढ़ते जा रहे है। और हमारा जैन धर्म तो शुरू ही मेडिटेशन से हुआ है। तो क्यू ना हम आने वाली generation को ध्यान के बारे में पहेले सिखाएं और फिर धर्म क़े बारे में। अन्यथा सब धर्म और ध्यान से दूर हो जाएँगे। हम कुछ लाख बचे हैं, ऐसा ही चलता रहा तो आने वाले 50-70 सालो में शायद ही नाम बचेगा जैन धर्म का।
इस पंक्ति पर दुबारा ध्यान दीजिए – धर्म सब करते है। ध्यान कोई नहीं करता।
और अपने आप से पूछिए, आप पिछली बार कब 20 मिनट आँखें बंद करके मंदिर में बैठे थे?